उत्तराखंड: कोरोना के बीच स्वाइन फ्लू से युवक की मौत, पांच दिन से काट रहा था अस्पतालों के चक्कर
उत्तराखंड में कोरोना वायरस के खौफ के बीच इलाज न मिलने से स्वाइन फ्लू से पीड़ित एक युवक की मौत हो गई। पीड़ित पांच दिन इलाज के लिए देहरादून और ऋषिकेश में भटक रहा था। बृहस्पतिवार आधी रात को परिजन उसको लेकर हरिद्वार जिला अस्पताल पहुंचे। यहां उपचार के दौरान उसने दम तोड़ दिया।  बता दें कि इससे पहले भी स्वाइन फ्लू से एक महिला की जान जा चुकी है।
 

सिडकुल थानाक्षेत्र के एक गांव का एक युवक काफी समय से बीमार था। परिजनों ने पहले उसे रुड़की के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। युवक की हालत गंभीर होने पर चिकित्सकों ने हायर सेंटर रेफर किया। बताया जाता है कि परिजन उसे देहरादून के एक अस्पताल में ले गए।

जहां जांच में उसे स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। वहां पर उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो चिकित्सकों ने रेफर कर दिया। परिजनों ने बताया कि दून के कुछ अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया था। 

 



परिजनों का कहना है कि इसके बाद वे एम्स ऋषिकेश लेकर गए, लेकिन वहां पर बेड न होने की बात कहकर भर्ती करने से इनकार कर दिया। बृहस्पतिवार रात को परिजन युवक को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे। उस समय युवक ऑक्सीजन पर था।

उसका इमरजेंसी में इलाज शुरू किया गया। पीड़ित को वेंटीलेंटर पर रखने की जरूरत थी, लेकिन अस्पताल में वेंटीलेंटर की सुविधा नहीं होने पर सामान्य तरीके से ही इलाज दिया गया। करीब आधे घंटे बाद ही उसकी मौत हो गई।

अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डॉ. राजेश गुप्ता ने बताया कि शुक्रवार को मृतकके घर पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम ने परिजनों की जांच करते हुए सैंपल लिये हैं। वहीं, जानकारी में आया है कि उसके परिवार दो अन्य लोग देहरादून के अस्पतालों में भर्ती हैं।



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पिछले कई दिनों से कुंभनगरी में फंसे गुजरात के यात्रियों की मुराद आखिरकार पूरी हो ही गई। केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद शुक्रवार को 1500 यात्रियों को लेकर यहां से 40 बसें दिनभर रवाना होती रहीं। गुजरात के यात्रियों की वापसी के साथ ही प्रशासन पुलिस के अफसरों ने भी राहत की सांस ली है, जो पिछले कई दिन से उन्हें लेकर परेशानी झेल रहे थे। पिछले कई दिन से गुजरात के सैकड़ों यात्री हरिद्वार में ही थे। जनता कर्फ्यू के दिन 31 मार्च तक के लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही गुजरात के यात्री परेशान हो गए थे और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल तक लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दी थी। हवाई, रेल एवं सड़क मार्ग पूरी तरह से बंद है। ऐसे में गुजरात के यात्री वापस के लिए बेहद परेशान हो गए थे। गुजरात के यात्रियों को लेकर केंद्रीय मंत्री मनसुख भाई ने प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन व पुलिस के अधिकारियों से संपर्क साधा था। केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक खुद यात्रियों से मिले थे। शुक्रवार को गुजरात के यात्रियों को वापस भेजने के लिए 40 बसों की व्यवस्था की गई। दिनभर करीब 1500 यात्रियों को लेकर बसों के रवाना होने का सिलसिला चलता रहा। इन यात्रियों में बुजुर्ग, युवा, महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल थे। सिटी मजिस्ट्रेट जगदीश लाल ने बताया कि सभी को रवाना कर दिया गया है। सैकड़ों किलोमीटर दूरी नापने पैदल ही निकले देश में लॉकडाउन से रोजी रोटी का संकट खड़ा होने के बाद सिडकुल के सैकड़ों मजदूरों की पैदल वापसी शुक्रवार को भी जारी रही। अब तक सैकड़ों मजदूर यहां से पैदल ही उत्तर प्रदेश और बिहार रवाना हो चुके हैं। पैदल चलने का यह क्रम सुबह से शाम और दिन रात जारी है। हाईवे पर जगह जगह इस तरह से बड़ी संख्या में मजदूरों को घर लौटते देखा जा सकता है। मालूम हो कि प्रदेश में बड़ी संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूर काम करते हैं। निर्माण क्षेत्र के अलावा उद्योगों में ऐसे मजदूरों की संख्या हजारों में है। प्रदेश में लॉकडाउन शुरू होते ही यहां के अधिकांश निर्माण कार्य बंद हो गए थे। प्रधानमंत्री की तरफ से 21 दिन के लॉकडाउन के बाद तो सभी प्रतिष्ठान और औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं। मालूम हो कि बड़ी संख्या में यहां ऐसे मजदूर रहते थे जो औद्योगिक इकाई में काम करने के साथ निवास करते थे। रेहड़ी ठेली पर खाना खाकर काम चला देते थे। अब यह सब बंद हो गया। ऐसे में इन लोगों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया। बृहस्पतिवार की रात और शुक्रवार को सैकड़ों मजदूर अपने घरों के लिए निकल पड़े। घर जाने के लिए कोई वाहन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में पैदल ही आगे बढ़े जा रहे हैं। बिजनौर निवासी रूप किशोर ने बताया कि प्रदेश में रहकर जैसे तैसे बच्चों के लिए रोजी रोटी कमा रहे थे, लेकिन पाबंदियों ने कमर ही तोड़ दी है। बार-बार घर से फोन आ रहा है। यहां खाने- पीने की दिक्कत हो रही है। ऐसे में यह सोचा कि वापस ही चलते हैं। जसपुर निवासी देवेंद्र कुमार भी अपने दो अन्य साथियों के साथ पैदल ही चले जा रहे थे। उन्होंने बताया कि जो कुछ दिनों की दिक्कतें होती तो झेल ही लेते। पैदल वापसी करने वाले मजदूरों को पुलिस भी जूझना पड़ रहा है।